जंग-ए-खंदक: जब मुसलमानों ने खाई खोदकर मक्का के दुश्मनों को रोक दिया

"जंग ए खंदक इस्लाम के इतिहास की वो लड़ाई थी जब मदीना को बचाने के लिए एक नई रणनीति अपनाई गई। खंदक खोदकर दुश्मन को रोकने का तरीका अरब में पहली बार इस्तेमाल हुआ। जानिए इस ऐतिहासिक घटना की पूरी कहानी आसान भाषा में।"

इस्लामी इतिहास की सबसे रणनीतिक और अद्भुत लड़ाइयों में से एक “जंग-ए-खंदक” (Battle of the Trench) है। यह लड़ाई हज़रत मुहम्मद ﷺ के नेतृत्व में उस वक़्त लड़ी गई जब पूरा मक्का और अरब के कई कबीले मिलकर मदीना पर ह

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यह जंग कब हुई?

यह जंग सन 5 हिजरी (627 ईसवी) में लड़ी गई थी।

इसको “ग़ज़वा-ए-अहज़ाब” (Battle of the Confederates) भी कहा जाता है क्योंकि इस जंग में कई कबीले एकजुट होकर मदीना पर चढ़ाई करने आए थे।


दुश्मनों का मक़सद

मक्का के क़ुरैश, यहूदियों का बनू नज़ीर कबीला और कई और कबीले मिलकर मुसलमानों को मदीना से मिटा देना चाहते थे।

इन सबकी फौज 10,000 से ज़्यादा लोगों की थी जबकि मुसलमानों की तादाद मुश्किल से 3000 थी।


खाई (Trench) की योजना कैसे बनी?

जब यह खबर मदीना पहुँची कि मक्का से एक बहुत बड़ी फौज मदीना की तरफ़ बढ़ रही है, तो:

हज़रत सलमान फ़ारसी  ने सलाह दी:
“हम अपने मुल्क फ़ारस (Persia) में जब बड़े दुश्मन आते हैं, तो शहर के बाहर गहरी खाई (Trench) खोद देते हैं ताकि दुश्मन घोड़ों और ऊंटों के साथ अन्दर न आ सकें।”

हज़रत मुहम्मद ﷺ ने इस सलाह को पसंद किया और फ़ौरन खाई खोदने का हुक्म दिया।


खाई की खुदाई

खाई तक़रीबन 5.5 किलोमीटर लंबी और 15 फीट गहरी थी।

खुदाई में खुद रसूलुल्लाह ﷺ भी शामिल हुए।

सर्दी का मौसम था, खाने का सामान बहुत कम था, लेकिन फिर भी मुसलमानों ने हिम्मत नहीं हारी।


दुश्मन मदीना पहुँचा, लेकिन खाई ने रोक दिया

जब दुश्मनों की फौज मदीना पहुँची तो खाई देखकर हैरान रह गई।

उनके घोड़े और ऊँट खाई पार नहीं कर पा रहे थे।

10,000 की फौज खाई के इस पार इंतज़ार करती रही।


मुश्किलें और भूख

खाई के दोनों ओर तने हुए थे।

मुसलमानों के पास खाना बहुत कम था, कई लोग पेट पर पत्थर बाँधते थे भूख मिटाने के लिए।

मौसम भी सर्द था और हर तरफ़ खतरे ही खतरे थे।


एक बड़ा हादसा – बनू क़ुरैज़ा की गद्दारी

मदीना का यहूदी कबीला बनू क़ुरैज़ा पहले मुसलमानों का साथ दे रहा था।

लेकिन इसी दौरान इन्होंने गद्दारी की और मदीना के पीछे से हमला करने का प्लान बनाया।

अगर वो हमला कर देते तो मदीना दो तरफ़ से घिर जाता।

लेकिन अल्लाह ने मदद की और उनका प्लान नाकाम हो गया।


अल्लाह की मदद – आंधी का तूफ़ान

जब हालात बहुत ज्यादा मुश्किल हो गए, तो अल्लाह ने एक तेज़ आंधी भेजी।

इतनी तेज़ आँधी थी कि दुश्मनों के खेमे उड़ने लगे, आगें बुझ गईं, बरतन उलट गए।

दुश्मन घबराकर भाग खड़े हुए और जंग ख़त्म हो गई।


  नतीजा

मुसलमानों की शानदार कामयाबी हुई।

बिना एक बड़ी जंग लड़े, मदीना महफूज़ रहा।

इस जंग के बाद मक्का और उसके साथी कभी खुलकर मदीना पर हमला नहीं कर पाए।


आज के लिए सीख

कभी हालात कितने भी खराब हों, अगर ईमान और यक़ीन है तो अल्लाह की मदद ज़रूर आती है।

रणनीति और अक़्ल से काम लेना भी इस्लाम सिखाता है, जैसा कि खाई खोदने की तरकीब थी।

आज भी हमें मुश्किल हालात में सब्र, मेहनत और दुआ का सहारा लेना चाहिए।


नतीजे का असर

इस जंग के बाद इस्लाम का दबदबा बढ़ा।

मक्का के लोगों को समझ आ गया कि मुसलमान अब कमज़ोर नहीं रहे।

यह जंग इस्लामी उम्मत की एकता, इमानदारी और हिम्मत की मिसाल बन गई।


क्या आप जानते हैं?

इस जंग में हज़रत अली  ने अम्र बिन अब्दे वुद जैसे खतरनाक लड़ाके को एक ही वार में मार गिराया था, जो खाई पार कर के मुसलमानों की तरफ़ आ गया था।


अंत में:

जंग-ए-खंदक हमें बताती है कि मुसलमानों ने सिर्फ़ तलवार से नहीं, बल्कि अक्ल और इमान से भी जंगें जीती हैं। ये जंग यक़ीन, दुआ और सब्र का पैग़ाम है। अगर हम आज भी उस जज़्बे और उस यक़ीन के साथ चलें, तो कोई ताक़त हमें हरा नहीं सकती।

सैफुल्लाह कमर शिबली

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