प्रस्तावना
बकराईद को ईद-उल-अज़हा भी कहा जाता है। यह इस्लाम धर्म के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है।
पूरी दुनिया के मुसलमान इसे त्याग, बलिदान, और अल्लाह के प्रति समर्पण के प्रतीक के रूप में मनाते हैं।
यह त्योहार हमें यह सिखाता है कि ईमान और आज्ञाकारिता का सबसे बड़ा उदाहरण क्या है।
आइये जानते हैं कि बकराईद क्यों मनाई जाती है, इसका क्या महत्व है, और इस दिन क्या किया जाता है।

बकराईद का इतिहास
ईद-उल-अज़हा का सीधा संबंध हज़रत इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) की घटना से है।
हज़रत इब्राहीम अल्लाह के बहुत नेक और आज्ञाकारी पैगंबर थे। उन्होंने अपना पूरा जीवन अल्लाह के आदेशों को मानने में बिता दिया।
एक दिन अल्लाह ने इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) की आजमाइश करने के लिए उन्हें एक सपना दिखाया।
सपने में उन्हें अपने बेटे हज़रत इस्माईल (अलैहिस्सलाम) को क़ुर्बान (बलिदान) करने का आदेश मिला।
यह सपना तीन रातों तक आया। इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) को यकीन हो गया कि यह अल्लाह का हुक्म है।
बेटे की रज़ामंदी
इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) ने अपने बेटे इस्माईल (अलैहिस्सलाम) से यह बात कही।
इस्माईल (अलैहिस्सलाम) ने कहा:
“अब्बा जान! अगर यह अल्लाह का हुक्म है तो आप इसमें देर मत कीजिए। आप मुझे सब्र करने वालों में पाएंगे।”
यह जवाब ईमानदारी, आज्ञाकारिता और बलिदान की सबसे बड़ी मिसाल थी।
क़ुर्बानी का अद्भुत वाकया
जब इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) बेटे को क़ुर्बान करने लगे, तब अल्लाह ने उनकी सच्ची नीयत और इम्तिहान में सफलता देखी।
अल्लाह ने फ़रिश्ते भेजकर इस्माईल (अलैहिस्सलाम) की जगह एक बड़ा मेंढ़ा (दुम्बा) भेज दिया।
इस तरह इस्माईल (अलैहिस्सलाम) बच गए और मेंढ़े की क़ुर्बानी दी गई।
बकराईद मनाने का महत्व
यह घटना हमें यह सिखाती है:
- पूरी तरह से अल्लाह के आदेश को मानना चाहिए।
- त्याग और बलिदान करने में भी पीछे नहीं हटना चाहिए।
- धैर्य और विश्वास रखना चाहिए।
इसलिए मुसलमान इस दिन जानवर (बकरी, भैंस, ऊँट आदि) की क़ुर्बानी देते हैं।
यह क़ुर्बानी हज़रत इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) की याद में दी जाती है।

बकराईद कैसे मनाते हैं?
1️⃣ ईद की नमाज
सुबह मुसलमान ईदगाह या मस्जिद में इकट्ठा होकर ईद-उल-अज़हा की नमाज़ अदा करते हैं।
इसमें अल्लाह की तारीफ़ और इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) के बलिदान की याद की जाती है।
2️⃣ क़ुर्बानी देना
नमाज के बाद मुसलमान क़ुर्बानी करते हैं। यह:
- बकरी
- भैंस
- ऊँट
- भेड़ आदि का किया जाता है।
क़ुर्बानी का मांस तीन हिस्सों में बांटा जाता है:
- गरीबों और ज़रूरतमंदों को दिया जाता है।
- रिश्तेदारों और दोस्तों में बांटा जाता है।
- अपने घर में रखा जाता है।
3️⃣ भाईचारे का दिन
इस दिन लोग:
- एक-दूसरे से मुलाकात करते हैं।
- खुशियाँ बाँटते हैं।
- गरीबों की मदद करते हैं।
बकराईद का आध्यात्मिक संदेश
बकराईद का सबसे बड़ा संदेश यह है:
- त्याग और समर्पण की भावना को अपनाना।
- ईमान को मजबूत करना।
- गरीबों और बेसहारों का ध्यान रखना।
- अहम (ego) को खत्म करना।
- भाईचारा बढ़ाना।
आज के दौर में जहां स्वार्थ और भौतिकता का बोलबाला है, बकराईद का यह संदेश और भी जरूरी हो जाता है।
आज के समय में बकराईद का महत्व
आज बहुत से लोग बकराईद को सिर्फ मांस खाने का त्योहार समझते हैं।
जबकि इसका असली मकसद:
- त्याग, बलिदान और अल्लाह के प्रति सच्ची नीयत दिखाना है।
- गरीबों की मदद करना।
- सच्ची इंसानियत को अपनाना।
हमें चाहिए कि हम इस त्योहार के असली मक्सद को समझें और अपने बच्चों को भी यह सही बात सिखाएं।
निष्कर्ष
बकराईद सिर्फ एक त्योहार नहीं है, बल्कि यह एक महान सबक है।
हज़रत इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) और हज़रत इस्माईल (अलैहिस्सलाम) की यह घटना पूरी मानवता को यह बताती है कि अल्लाह के आदेश के आगे सब कुछ न्योछावर करना ही सच्ची भक्ति है।
आइये हम इस बकराईद पर:
✅ त्याग और बलिदान के इस जज़्बे को अपनाएं।
✅ गरीबों की मदद करें।
✅ भाईचारे को मजबूत करें।
✅ इस त्योहार की असली रूह को दुनिया में फैलाएं।
समापन
हर मसलमान को चाहिए कि इस्लाम के इस महान इतिहास को जाने और दूसरों तक पहुँचाए।
हज़रत इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) और हज़रत इस्माईल (अलैहिस्सलाम) की यह घटना आज भी इंसानियत के लिए सबसे बड़ा प्रेरणा स्रोत है।
सैफुल्लाह कमर शिबली