इब्न अल-हैथम: वो मुस्लिम वैज्ञानिक जिसने रौशनी की दुनिया बदल दी

"इब्न अल-हैथम ने ऑप्टिक्स, कैमरा के सिद्धांत और वैज्ञानिक पद्धति में महत्वपूर्ण योगदान दिया, लेकिन उनका नाम आज मुसलमानों की याद से मिट गया है।"

जब भी दुनिया में महान वैज्ञानिकों की बात होती है, तो अक्सर न्यूटन, गैलीलियो, आइंस्टीन जैसे नाम गिनाए जाते हैं। लेकिन क्या आपने कभी इब्न अल-हैथम का नाम सुना है? बहुत कम लोग जानते हैं कि इब्न अल-हैथम ने ऐसे ज़माने में विज्ञान में क्रांतिकारी खोजें की थीं जब यूरोप अंधकार के युग (Dark Ages) से गुजर रहा था।

इब्न अल-हैथम कौन थे?

इब्न अल-हैथम का पूरा नाम अबू अली अल-हसन इब्न अल-हैथम था। उनका जन्म 965 ईस्वी में बसराह (आज का इराक) में हुआ। वे एक मुस्लिम वैज्ञानिक, गणितज्ञ, खगोलशास्त्री और दर्शनशास्त्री थे। उन्होंने मिस्र में ज्यादातर अपना जीवन बिताया, खासकर काहिरा में।

उनका सबसे प्रसिद्ध कार्य था — रौशनी और दृष्टि (Optics) पर रिसर्च, जिसके कारण उन्हें आज “ऑप्टिक्स का जनक” कहा जाता है।


उनकी सबसे बड़ी खोज: दृष्टि का सिद्धांत

उस ज़माने में लोग यह मानते थे कि आंखों से रौशनी बाहर निकलती है और वस्तुओं से टकरा कर हम चीज़ें देखते हैं। लेकिन इब्न अल-हैथम ने यह साबित किया कि रौशनी वस्तुओं से हमारी आंखों में आती है, न कि हमारी आंखों से बाहर जाती है। यह विज्ञान की दुनिया में एक बहुत बड़ा बदलाव था।

उनकी इस खोज ने बाद में कैमरा और आंखों की बीमारियों के इलाज की नींव रखी।


उनकी महान किताब: Kitab al-Manazir (Book of Optics)

इब्न अल-हैथम की सबसे प्रसिद्ध किताब “किताब अल-मनाज़िर” (Kitab al-Manazir) थी, जिसे लैटिन में बाद में “Opticae Thesaurus” के नाम से अनुवाद किया गया। यह किताब 7 वॉल्यूम की थी जिसमें उन्होंने दृष्टि, प्रकाश की परावर्तन (reflection) और अपवर्तन (refraction) के बारे में विस्तार से लिखा।

यूरोपीय वैज्ञानिकों ने सैकड़ों साल बाद उनकी इस किताब से सीख ली और उसी आधार पर अपने प्रयोग किए। न्यूटन और कीपलर जैसे वैज्ञानिकों ने भी उनकी किताबों का हवाला दिया।


उनके कुछ और योगदान:

कैमरा ऑब्स्क्यूरा (Camera Obscura) का विचार दिया — जो आधुनिक कैमरे का आधार है।

प्रयोग और अवलोकन (Observation & Experimentation) को विज्ञान में एक मजबूत आधार बनाया।

उन्होंने वैज्ञानिक पद्धति (Scientific Method) की नींव रखी, जिसमें प्रयोग, अवलोकन और तर्क का सहारा लिया जाता है।

उन्होंने गणित, ज्यामिति, खगोलशास्त्र और इंजीनियरिंग में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।


आज के दौर में उनकी प्रासंगिकता

आज हम कैमरे से फोटो खींचते हैं, टेलीस्कोप से आकाश को देखते हैं, आंखों की सर्जरी करवाते हैं, या लाइट को रिफ्लेक्ट कर के लेजर बनाते हैं — इन सभी चीजों की नींव इब्न अल-हैथम ने ही रखी थी।

लेकिन दुख की बात ये है कि आज मुसलमान खुद अपने इस महान वैज्ञानिक को भूल चुके हैं। स्कूलों में उनके नाम का ज़िक्र तक नहीं होता, जबकि गैलीलियो और न्यूटन की कहानियां हर बच्चा जानता है।


मुसलमानों की भूल और पश्चिम की कदर

इब्न अल-हैथम को पश्चिमी देशों ने “Alhazen” के नाम से सम्मान दिया। यूरोप की यूनिवर्सिटीज़ में उनकी किताबें पढ़ाई गईं, उनके नाम पर गली, लाइब्रेरी, अवॉर्ड तक रखे गए। लेकिन हमारे यहां उनके नाम पर न कोई कॉलेज, न कोई शोध संस्थान।

क्या ये विडंबना नहीं कि एक मुस्लिम वैज्ञानिक जिसने पूरी दुनिया को रोशनी का रास्ता दिखाया, वो अपने ही लोगों की याद से मिटा दिया गया?


अब हमें क्या करना चाहिए?

अपने बच्चों को इब्न अल-हैथम जैसे महान मुस्लिम वैज्ञानिकों के बारे में पढ़ाना चाहिए।

स्कूल और कॉलेज में उनके बारे में जानकारी दी जानी चाहिए।

उनकी तरह खोज और विज्ञान में योगदान देना हमारा मक़सद होना चाहिए।

Video Dekhen…  https://youtu.be/h5aKRvjIuXo


निष्कर्ष:

इब्न अल-हैथम सिर्फ एक वैज्ञानिक नहीं थे, वो एक सोच थे, एक क्रांति थे। उन्होंने साबित किया कि इस्लाम सिर्फ इबादत का नहीं, बल्कि इल्म और साइंस का भी मज़हब है।
आइए आज से हम यह तय करें कि हम अपने बच्चों को सिर्फ नामी वैज्ञानिकों का नाम ही नहीं, बल्कि मुस्लिम दुनिया के ऐसे चमकते सितारों से भी परिचित कराएंगे।

Saifullah Qamar Shibli

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